उसके नाज़ुक हाथ...
ठंडी रेशम ....
नशीली आँखें ....
उसके वो गुनगुने ख़याल ....
वो खयालों की गहराइयां ....
वो एक आवारा लट ...
जो आँख का नशा और भी बढ़ा रही है ....
बीत चुके हैं ....
कई दशक ...
लेकिन वो नशीली आँख ...
आज भी कभी ...
डूब जाती हैं ...
यादों के समंदर में ...
और लौटती है एक आंसू के साथ ...
एक चांदी की चम्मच ....
चाँद को मिलाती ...
उसकी चाय की प्याली में ....
कुछ सफ़ेद चांदनी ...
डुबाती उस चाँद को ....
वो जानती है ...
की आज भी ...
वो उसे याद करता है ....
समेटती है ...
अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ...
एक काले कप पे ...
अपने नाज़ुक होठ ...
सिकोड़ती हुई ...
आँखों में नशीली मुस्कान ...
फूंक मारती है ...
उस चाय की प्याली में ...
और चाय में से ..
भाप के रूप का ...
वह उसका दीवाना ....
नाचता हुआ ...झूमता हुआ ...
चूमता है उसके होठों को ....
और समा जाता है उसके होठों में .....
सदा के लिए ... सदा के लिए ....
No comments:
Post a Comment