सुबह की ठंडी ओस अभी भी बालकनी की रेलिंग पे थी लेकिन किसी ने महसूस न की थी....
आज फिर हवा दरवाज़ों के बीच "पक्द्दम पक्द्दाइ" खेलेगी .. पर कोई न देखेगा....
आज फिर शाम को बारिश की बूँदें खिड़की के कांच की 'फिसलपट्टी' पे फिस्लेंगी ..पर कोई ध्यान न देगा ...
क्योंकि सब घिरे होंगे बेमानी फ़िज़ूल के काम करने में .....
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