शायद रात के करीब 11 बज चुके थे। छोटू को अभी घड़ी देखनी आती नहीं थी, लेकिन मम्मी के बार बार "सो जाओ, टाइम हो गया है", कहने से छोटू अंदर वाले कमरे में सो गया था .... और सोये हुए काफी वक़्त गुज़र चुका था ... और फिर बाहर कुत्तों ने भौकना भी शुरू कर दिया था ..... इसका मतलब था की काफी देर हो गयी थी।
दोनों कमरों में अँधेरा था, सिर्फ बाहर की स्ट्रीट लाइट की थोड़ी सी रौशनी अंदर के कमरे में खिड़की से लगे बेड पर आ रही थी। मम्मी बाहर के कमरे मैं सो रही थे, मम्मी को नींद तो आई नहीं थी, बस करवटें बदल रही थी, और पुराने बेड पर हर करवट के साथ "कें ... कें" की आवाज़ आती थी। इस बेड की और पुराने सरकारी पंखे की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी पूरे घर में। आखिर मम्मी को नींद आती भी कैसे, पापा घर जो नहीं आये थे अब तक ।
अचानक बाहर के कमरे में टी:वी के साथ रखा टेलीफोन बजा। रात के सन्नाटे में उसकी आवाज़ डरा देने वाली थी। टेलीफोन की आवाज़ से छोटू भी उठ गया, वह जानता था की इस टेलीफोन से शायद उसका सम्बन्ध है।
Campus के main gate पर एक गार्ड रूम था, फ़ोन वहीँ से आया था, ये बताने के लिए की तुम्हारे पापा ने बहुत ज्यादा पी ली है और उन्हें घर ले जाने वाला कोई चाहिए ।
मम्मी फ़ोन रख के पलटी तो देखा छोटू नींद से उठ कर पास ही खड़ा था। मम्मी ने छोटू की तरफ देखा और बोली "तू क्यों जाग गया, जा सो जा, मैं ले आउंगी"......
छोटू जानता था की इस वक़्त मम्मी बाहर जाती अच्छी नहीं लगेंगी, इस छोटी सी उम्र में उसने काफी देख और सीख लिया था। छोटू ने अपनी चप्पल पहनी और बोला, "आपके जाने लायक जगह नहीं है वोह, मैं जाता हूँ" ....... यह कहते हुए छोटू जानता था की वोह ये कह तो रहा है ......लेकिन बाहर जाते ही उसे बहुत डर लगेगा।
हिम्मत जुटा कर जैसे तैसे बाहर निकला ...... अंधेरे के डर से उसकी बुरी हालत थी। बाहर निकलते ही उसने 10-15 पत्थर उठाए और अपनी जेब में भरे, सोच रहा था की जेब इतनी छोटी क्यों होती है, अगर कुत्ते पीछे पड़े तो यह कुछ पत्थर ही उसको बचा पायेंगे। सर्दियों का मौसम था लेकिन डर के मारे छोटू के पसीने छूट रहे थे।
जहाँ कोई कुत्ता दूर नज़र भी आता, छोटू रास्ता बदल लेता, डर कहता की भाग ........ लेकिन वह जानता था की अगर वो भागा तो कुत्ता भी उसके पीछे भागेगा ....... दिल और दिमाग की लड़ाई इस छोटी उम्र में हे शुरू हो गयी थी। अंधरे का इतना डर था की हाथ में पत्थर को इतना जोर से पकड़ा था की उसका नुकीला कौना चुभता था लेकिन उसे दर्द महसूस भी नहीं हो रहा था। बार बार मन करता की वापस पलट जाऊं लेकिन फिर मम्मी का ख़याल आ जाता। अंधरे में वह डरता हुआ किसी तरह आगे बढ़ रहा था,......... न जानते हुए ......उस रात .... छोटू ने डर पर जीत पा ली थी।
जैसे तैसे छोटू उस जगह तक आया जहाँ पापा के होने की खबर गार्ड ने टेलीफोन पर दी थी। एक तो डर से सांस फूली हुई थी ........ और उप्पर से उस जगह से अजीब सी महक आ रही थी। छोटू को यह महक जानी पहचानी सी लग रही थी ......, हाँ ....... ये वही महक थी जो एक बार स्कूल बस में आई थी जब एक लड़की ने उलटी कर दी थी।
अजीब अजीब औरडरावने से दिखने वाले लोग थे हर तरफ ..... बहुत डर लग रहा था छोटू को, एक तरफ डर था और दूसरी तरफ हलकी सी ख़ुशी भी थी, की कम से कम अंधरे और कुत्तों के डर से तो बाहर निकला। छोटू का मन नहीं था अंदर जाने का, लेकिन फिर भी .. जाना तो था।
उस गंदी सी जगह में जो एक ठीक सा आदमी दिखा, छोटू ने रोते हुए उस से कहा " मेरे पापा को मेरे घर तक पहुंचा दो"..... डर के मारे छोटू के कब आंसू बहने लगे, उसे पता भी नहीं चला था।
किसी तरह पापा को रिक्शा में बिठा कर छोटू घर वापस आया। मम्मी ने बाहर के कमरे में फर्श पर एक चादर बिछाई और पापा को उस पर सुला दिया।
हर बार की तरह, छोटू दूसरे कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया। चाह के भी आंसू नहीं रुके ..... मम्मी को आवाज़ न आये इसलिए चादर का एक कोना मूह में दबा लिया। गीले तकिये की ठंडी ठंडी छुंन से कब नींद आ गए उसे पता भी नहीं चला।